हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो संपूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं, उन से हमारी प्रार्थना है कि, वह हमें ऋतु के बंधनों से मुक्त कर दें जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जावे, जिस प्रकार एक ककड़ी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी बेल में पक जाने के बाद जन्म मृत्यु के बंधनों से सदैव के लिए मुक्त हो जाए और आपके चरणों की अमृत धारा का पान करते हुए शरीर को त्याग कर आप में लीन हो जाए।
स्वस्तिक का उदगम संस्कृत के "सु" उपसर्ग और "अस" धातू को मिलकर बना है। संस्कृत में "सु" का अर्थ शुभ/मंगल और "अस्ती" का मतलब होना है अर्थात कोई भी कार्य शुभ और मंगल होना है। "स्वस्तिक" बनाते समय हमेशा लाल रंग का ही उपयोग किया जाता है। क्योंकि लाल रंग भारतीय संस्कृति में शुभ माना जाता है। धनवृद्धी, गृहप्रवेश, ग्रहशांति, वास्तुदोष निवारण, नई दुकान मे व्यापार की वृध्दी और लाभ होने के लिए या फिर कोई भी पूजा पाठ करने से पहले "स्वस्तिक" बनाया जाता है। इसके बगैर कोई भी पूजा की शुरुवात नही की जा सकती है।
शास्त्रों के अनुसार कोई भी शुभ कार्य में माथे पर लगाया जाने वाला बिंदु मतलब तिलक होता है। अगर पूजा पाठ के समय हम बिना तिलक लगाए पूजा करते हैं तो वह पूजा निष्फल मानी जाती है। तिलक हमेशा मस्तिष्क के मध्य भाग (दोनों भौंहों के बीच नासिका (नाक) के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर) पर लगाया जाता है। हमारे मस्तिष्क के बीच में "आज्ञा चक्र" होता है, जिसे "गुरु चक्र" भी कहा जाता है। मस्तिष्क के बीच में केंद्र बिंदु होने के कारण हमारी एकाग्रता और स्मरण शक्ति बनी रहती है। यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी
जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसलिए इसे "शिवनेत्र" अर्थात कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है।
हमारे भारत को विविधता का स्वरूप माना जाता है| यहां अनेक धर्म और जाति के लोग रहते हैं | इन सबके विभिन्न प्रकार के त्योहार, खानपान, वेशभूषा सभी मे विविधता है| सभी लोग अपने अपने त्योहार सही ढंग से मनाते हैं| उन्हीं में से एक है हमारा भारतीय त्योहार "गुरु पूर्णिमा" जो कि हर धर्म, हर जाति के लोग इसे मनाते हैं| "गुरु पूर्णिमा" यह हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है| "गुरु पूर्णिमा" को व्यास पूर्णिमा भी कहां जाता है| इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिवस भी मनाया जाता है| महर्षि वेदव्यास इनको सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है|
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