भारतीय परम्परा

रूचि जी गोस्वामी

Bikaner Rajasthan
रूचि जी गोस्वामी

मैं रुचि गोस्वामी छोटी काशी बीकानेर राजस्थान से हूं । बारह वर्षों के अध्यापन अनुभव के साथ वर्तमान में एच ओ डी एडमिशन डिपार्टमेंट के रूप में बीकानेर के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में कार्यरत हूं । शैक्षणिक योग्यता मैंने एम ए, बी एड.समाजशास्त्र, एम एस डब्ल्यू के अलावा कंप्यूटर के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा कर रखा है। स्नातक स्तर पर अंग्रेजी साहित्य की छात्रा रही हूं ।

बीकानेर जयपुर के प्रतिष्ठित गोस्वामी भट्ट परिवार से होने के कारण मेरी रुचि शुरुआत से ही शिक्षा,संगीत एवं साहित्य में रही है हिंदी लेखन के क्षेत्र में पिछले सात वर्षों से सक्रिय हूं । मेरी कविताएं राजस्थान, भोपाल, दिल्ली, मुंबई, उज्जैन, देहरादून आदि से प्रमुख पत्रिकाओं एवं मेरे आलेख राजस्थान के प्रतिष्ठित अखबारों में प्रखर चिंतक एवं विचारक के रूप में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं ।

मेरा मानना है कि मनुष्य के जीवन की सार्थकता उसके विचारों की शुद्धता एवं उसके द्वारा किए गए कर्मों की श्रेष्ठता पर निर्भर है ।

आमलकी एकादशी

आमलकी एकादशी

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को "आमलकी एकादशी" कहते हैं। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। आमलकी एकादशी की महिमा बताते हुए भगवान श्री विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनके लिए फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के पुष्य नक्षत्र में आने वाली एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है।

देव शयनी एकादशी

देव शयनी एकादशी

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी हरिशयनी या पद्मा एकादशी कहा जाता है । हिंदू मान्यता के अनुसार 4 महीनों के लिए भगवान श्री विष्णु निद्रा में रहते हैं.जिसे हरिशयन काल कहते हैं। इन 4 महीनों में विवाह आदि जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे "देवउठनी या हरि प्रबोधिनी एकादशी" भी कहा जाता है, के दिन भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है तथा इसी दिन से मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है।

महाशिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि का महत्व

भारतीय हिंदू संस्कृति, परंपराओं एवं सनातन धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व का अत्यधिक महत्व है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा एवं आराधना की जाती है। शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन लय एवं प्रलय दोनों ही उनके अधीन हैं। अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश दोनों ही महादेव के अधीन है। त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही शिव रूप हैं। आकाश और पाताल तीनों लोक के आदि देव महादेव ही हैं।





जया एकादशी

जया एकादशी

जया एकादशी के दिन व्रत रखने से एवं भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मृत्यु के उपरांत स्वर्ग की प्राप्ति के लिए जया एकादशी का व्रत एवं जया एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। मनुष्य के द्वारा जीवन काल में अनेक पाप हो जाते हैं तथा उन्हीं पापों की सजा से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जया एकादशी का व्रत किया जाता है।

षटतिला एकादशी

षटतिला एकादशी

श्लोक के अनुसार तिल का उपयोग स्नान करने, हवन करने, उबटन करने,तिल मिश्रित जल को पीने तिल का दान करने एवं भोजन में तिल का उपयोग करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस तरह 6 प्रकार से तिल का उपयोग अनंत फल देता हैं एवं भगवान विष्णु की आराधना के लिए विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने से सुख समृद्धि में वृद्धि होती है।





पौष पुत्रदा एकादशी

पौष पुत्रदा एकादशी

पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी का अपना अलग महत्व है। अधिकांश इस एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है, माना जाता है कि इस दिन जिस व्यक्ति ने पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ उपवास किया एवं हृदय से श्री हरी की आराधना की उसे स्वस्थ सुंदर एवं गुणवान संतान की प्राप्ति होती है।

मोक्षदा एकादशी

मोक्षदा एकादशी

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी कहलाती हैं। इस व्रत के प्रभाव से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन श्री कृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है। भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है। मोक्ष का अर्थ है मोह का त्याग। इसलिए यह एकादशी मोक्षदा के नाम से भी जनि जाती है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की धूप, दीप नैवेद्य आदि से भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिए।





श्री गोवर्धन पूजा एवं प्राकट्य

श्री गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट भाग - 2

गोवर्धन परिक्रमा साक्षात श्री कृष्ण भगवान की परिक्रमा है। इस कलयुग में जो श्रद्धा से भरकर परिक्रमा करता है वो गोवेर्धन नाथ की अनूठी कृपा का पात्र जरूर बनता है। गोवर्धन परिक्रमा श्री कृष्ण के लिए भक्तों के प्रेम को दर्शाता है। इस कलियुग में गिरिराज जी महाराज की परिक्रमा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। गोवर्धन की परिक्रमा श्रद्धालुओं के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है।

श्री गोवर्धन पूजा एवं प्राकट्य

श्री गोवर्धन पूजा एवं प्राकट्य भाग - 1

गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था। तो चलिए जानते हैं क्या है इसकी कहानी।





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