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ओणम का इतिहास और महत्व

ओणम का इतिहास और महत्व

ओणम पर्व के साथ साथ चिंगम महीने में केरल में चावल की फसल का त्योहार और वर्षा के फूल का त्योहार मनाया जाता है | ओणम का पर्व भगवान् विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा हुवा है, इस पर्व को केरल में राजा महाबलि के स्मृति में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है, वह यह है कि- प्राचीन काल में राजा महाबलि केरल राज्य के एक बहुत ही पराक्रमीऔर प्रतापी राजा थे और वह अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे। वह वीर और दानी राजा भी थे, उनके द्वार से कभी कोई खली हाथ नै लोटा। अपने बाहुबल से उन्होंने तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर ली थी, तब उनके गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें सलाह दी कि वे सौ अश्वमेध यज्ञ करके इंद्र का पद प्राप्त कर लें और सदा के लिए त्रिलोक के स्वामी बन जाये। गुरु शुक्राचार्य की आज्ञानुसार राजा बलि ने सौ अश्वमेध यज्ञ करना आरंभ किया उनके 99 यज्ञ तो सकुशल संपन्न हो गये।
परन्तु 100वें यज्ञ के संपन्न होने से पहले वहां भगवान विष्णु वामन का रुप धारण करके प्रकट हो गये और राजा बलि से तीन पग धरती दान माँगी, राजा बलि इस बात से अनिभिज्ञ थे कि वामन अवतार में उनके सामने स्वयं भगवान विष्णु खड़े है। जब राजा बलि ने उनके छोटे रूप को देख कर उनकी माँग स्वीकार कर ली और ३ पग भूमि देने का वचन कर दिया तो वामन रुपी भगवान विष्णु ने विराट रुप धारण करके दो पग में सारे लोक नाप लिये और जब तीसरे पग के लिए स्थान पूछा तो राजा बलि ने कहा कि हे प्रभु तीसरे पग को आप मेरे मस्तिष्क पर रख दे। भगवान वामन ने जब तीसरा पग रखा तो राजा बलि पाताल लोक चले गये। राजा बलि के इस दान और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनसे वर माँगने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि ‘हे प्रभु मैं वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आ सकू।’ तब से ऐसा माना जाता है कि वह ओणम का ही पर्व है, जिसपर राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं। यहीं कारण है कि केरल में ओणम के इस पर्व को इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।





Importance and history of Onam Parv
ओणम पर्व

जिस प्रकार की उत्तर भारत में दशहरा तथा दीपावली को धूमधाम से मनाया जाता है उसी प्रकार ओणम का पर्व केरल राज्य का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, इसे देश-विदेश में रहने वाले लगभग सभी मलयाली लोगो मनाते है। इस पर्व पर लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके अच्छे तरीके से सजाते हैं। इसके साथ ही इस दौरान नौका दौड़, कथककली तथा गायन जैसे कई सारे मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते है। ओणम का पर्व मनाने वाले लोग इस दिन अपने घरों के आँगन मे फूलों की पंखड़ुयों से सुंदर रंगोलिया बनाते हैं, स्थानीय भाषा में इन रंगोलियों को ‘पूकलम’ कहा जाता है। राजा बलि की मूर्ति पूलकम के बीच में भगवान विष्णु के वामन अवतार की मूर्ति के साथ स्थापित की जाती है। इस दिन घरों में कई तरह के विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं जैसे - कालन, ओलन, अविअल, पचड़ी, इंजीपुल्ली, थोरान, सांभर, परिअप्पु करी और.केले का चिप्स |
ओणम के दिन लोग मंदिरों में पूजा करने नही जाते है बल्कि की इस दिन वे अपने घरों में ही पूजा करते है। मलयाली लोग का मानना है कि इस दिन घर में पूजा करने घर में समृद्धी आती है। इसके साथ ही इस पर्व को लेकर यह मान्यता भी है कि ओणम के दौरान राजा बलि पाताल लोक से पृथ्वी पर आते हैं और अपनी प्रजा के लिए खुशियां लाते है। आठ दिनों तक फूलों की सजावट का कार्य चलता है और नौवें दिन हर घर में भगवान विष्णु की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं विष्णु पूजा करते हुए इसके चारो तरफ नाचते-गाते हुए तालियां बजाती है। रात को गणेशजी और श्रावण देवता की मूर्ति बनाई जाती है। इसके पश्चात बच्चे वामन अवतार को समर्पित गीत गाते है। मूर्तियों के सामने दीप जलाये जाते है, पूजा-पाठ के पश्चात दसवें दिन मूर्तियों को विसर्जित कर दिया जाता है।





वास्तव में ओणम वह पर्व होता है जब केरल में नई फसल तैयार होती है और क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारत एक कृषि-प्रधान देश रहा है, यही कारण है कि इस दिन को इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। ओणम त्योहार के 10 दिन –
1. अथं - पहला दिन, जब राजा महाबली पाताल से केरल जाने की तैयारी करते है
2. चिथिरा - फूलों का कालीन जिसे पूक्क्लम कहते है, बनाना शुरू करते है
3. चोधी - पूक्क्लम में 4-5 तरह के फूलों से अगली लेयर बनाते है
4. विशाकम - इस दिन से तरह तरह की प्रतियोगितायें शुरू हो जाती है
5. अनिज्हम - नाव की रेस की तैयारी होती है
6. थ्रिकेता - छुट्टियाँ शुरू हो जाती है
7. मूलम - मंदिरों में स्पेशल पूजा शुरू हो जाती है
8. पूरादम - महाबली और वामन की प्रतिमा घर में स्थापित की जाती है
9. उठ्रादोम - इस दिन महाबली केरल में प्रवेश करते है
10. थिरुवोनम - मुख्य त्योहार





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