भारतीय परम्परा

होली - रंग अनेक, तरीके अनेक | Different ways to celebrate Holi

होली -  रंग अनेक, तरीके अनेक | Different ways to celebrate Holi

भारत त्यौहारों का देश है। पूरे साल कई बड़े त्यौहार देशवासी पुरे उत्साह के साथ मनाते है। उन्हीं में से एक होली का त्यौहार है। राग और रंगों के इस त्यौहार में लोग गीले-शिकवे भूलकर एक दूसरों को गले लगाते है और खूब मौजमस्ती भी करते है। भारत के अलावा नेपाल में भी पुरे उत्साह के साथ लोग होली पर्व को मनाया जाता है।

संस्कृति और त्योहारों से परिपूर्ण भारत देश में विभिन्न राज्यों में होली मनाने का तरीका भी विभिन्न है | जैसे की वृन्दावन में फूलो से होली खेली जाती है जबकि बरसाने में लठमार होली का प्रचलन है | आये जाने देश के हर कोने में कैसे होली का त्यौहार मनाया जाता है -





Vrindavan ki holi
वृंदावन की होली

- वृंदावन में होली का त्यौहार एकादशी के साथ ही शुरू हो जाता है। एकादशी के दुसरे दिन से ही कृष्ण और राधा के सभी मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है। फूलों की होली में ढेर सारे फूल एकत्रित कर एक-दुसरे पर फैके जाते है। जिसके बीच आती राधे-राधे की गूंज द्वापर युग की स्मृति दिलाती है। लेकिन वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की रौनक कुछ अनोखी ही होती है। इस दौरान बांके बिहारी जी की मूर्ति को मंदिर के बाहर रख दिया जाता है। मानो स्वयं श्री बांके बिहारी जी होली खेलने आये हो। यहाँ होली सात दिनों तक चलती है | सबसे पहले फूल, उसके बाद गुलाल, सूखे रंगों अंत में गीले रंगों से होली खेली जाती है।

barsane ki holi
बरसाने की लठमार होली

- ब्रज के बरसाने गाँव की लठ मार होली पुरे विश्व भर में प्रसिद्ध है | यह होली के कुछ दिन पहले खेली जाती है। यहाँ होली को कृष्ण व् राधा के अनूठे प्रेम के साथ जोड़ कर देखा जाता है। कहा जाता है की श्री कृष्ण और उनके दोस्त राधा की सखियों को तंग किया करते थे जिस पर उन्हें मार पड़ती थी। इसीलिए यहाँ होली पर मुख्यत नंद गाँव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती है। क्योंकि श्री कृष्ण नंद गाँव के और राधा रानी बरसाने की थी। नंद गाँव की टोली जब पिचकारियों के साथ बरसाने पहुंचती है तो ढोल की थाप पर बरसाने की महिलाएं पुरुषो को लाठियों से पिटती है। पुरुषों को इन लाठियों की मार से बचना होता है और महिलाओं को रंगो से भिगोना होता है। इस दौरान कई हजार लोग उन पर रंग फैंकते है।

- पंजाब का होला-मोहल्ला सिखों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब में होली के अगले दिन लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के दशम गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं इस मेले की परम्परा शुरू की थी। पंज प्यारे जुलुस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते है और निहंगो के अखाड़े नागी तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते है। ये जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।

- हरियाणा की धुलेंडी भारतीय संस्कृति में रिश्तों और कुदरत के बीच सामंजस्य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। हरियाणा में होली को एक अलग अंदाज धुलेंडी के रूप में मनाया जाता है। वैसे तो हरियाणा की होली बरसाने की लठमार होली के समान ही है पर यहाँ इस दिन भाभियाँ अपने देवरों को डंडे या कोड़े से पिटती है और देवर को पीटने से बचना होता है और भाभी को रंग लगाना होता है | आज के दिन भाभियो को अपने देवर को पीटने की आजादी होती है, मतलब भाभियाँ अपने देवरों से उनकी शरारतों का बदला लेती है। पुरे दिन की मार पिटाई की इस होली के बाद शाम को देवर अपनी भाभी के लिए उपहार लाता है और भाभी उन्हें मिठाई खिला के आशीर्वाद देती है।

- बिहार की फागु पूर्णिमा बिहार में होली के मौके पर गाये जाने वाले लोकगीत फगुआ की गायन शैली की अलग ही पहचान है। इसीलिए यहाँ की होली को फगुआ के नाम से भी जानते है। बिहार और उससे जुड़े उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे हिंदी नववर्ष के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। यहाँ होली तीन दिन तक मनाई जाती है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है। अगली दिन इससे निकली राख से होली खेली जाती है, जिसे "धुलेठी" कहते है।

तीसरे दिन फागु (फागु का अर्थ लाल रंग होता है) से होली खेली जाती है। होली के दिन लोग ढोलक की धुन पर नृत्य करते है, लोकगीत गाते हुए एक-दुसरे को रंग लगाते है। बिहार के कुछ स्थानों में कीचड़ की होली खेली जाती है और कई जगहो में कपडा फाड़ होली की परम्परा भी है।





rajasthan holi
राजस्थान की होली
राजस्थान की होली -

भारत देश के समान ही राजस्थान प्रदेश में भी अलग अलग शहरो में अलग अलग संस्कृति है| होली के अवसर पर भी अपनी अलग अलग परम्पराये है। इसमें कही गुलाल से, कही कोड़ा मार होली, कही राजस्थानी गैर नृत्य, और कही नुक्कड़ नाटक के साथ होली का त्यौहार मनाया जाता है। नुक्कड़ नाटक या तमाशे पौराणिक कथाओ पर आधारित होते है जिन्हे राजस्थानी चित्रकारी मर भी देखा जा सकता है |

राजस्थान में हर जगह होली का अलग ही रंग चढ़ता है। हर जगह के अलग तरीके, हर जगह के अलग रिवाज।

लट्ठमार होली (करौली व भरतपुर)
ब्रज के बरसाना गाँव में लठमार होली खेली जाती हैं। ब्रज में वैसे भी होली ख़ास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। करौली और भरतपुर भाग में भी लठमार होली का प्रचलन है जिसमे मर्दो की टोलियाँ महिलाओं पर पिचकारिसे रंग बरसते है और उनपर महिलाएँ खूब लाठियाँ बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है |

पत्थरमार होली (बाड़मेर व डूंगरपुर)
राजस्थान के बाड़मेर और डूंगरपुर जगहो में आदिवासी जनजाति पत्थरमार होली खेलते है | ढोल और चंग की आवाज जैसे-जैसे तेज होती है, वैसे-वैसे लोग दूसरी टीम को तेजी से पत्थर मारना शुरू कर देते हैं। बचने के लिए हल्की-फुल्की ढाल और सिर पर पगड़ी का इस्तेमाल होता है। यह एक खतरनाक प्रथा है जिसमे लोग खून भरी होली खेलते है | डूंगरपुर के भीलूड़ा गांव की प्रथा है ये |

कोड़ामार होली (श्रीगंगानगर)
नये चलन में पुरानी परंपराएं बड़े-बुजुर्गों के स्मृतियों में आज भी कैद है। जनपद की कोड़ामार होली भी अब सिर्फ किस्से कहानियों तक सीमित होकर रह गयी है। ढोल की थाप और डंके की चोट पर जहां हुरियारों की टोली रंग-गुलाल उड़ाती निकलती थी। वहीं महिलाओं की मंडली किसी सूती वस्त्र को कोड़े की तरह लपेट कर कोड़े को रंग में भिगोकर इसे मारती हैं।

चंग व गीदड़ (शेखावाटी)
चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता या धोती-कुर्ता पहनकर कमर में कमरबंद और पाँवों में घुंघरू बाँधकर ‘होली’ के दिनों में किये जाने वाले चंग नृत्य के साथ होली के गीत भी गाये जाते हैं। प्रत्येक पुरुष चंग को अपने एक हाथ से थामकर और दूसरे हाथ से कटरवे का ठेका से व हाथ की थपकियों से बजाते हुए वृत्ताकार घेरे में सामूहिक नृत्य करते हैं ,साथ में बांसुरी व झांझ बजाते रहते है व पैरो में बंधे घुंघरुओं से रुनझुन की आवाज निकलती रहती है। भाग लेने वाले कलाकार पुरुष ही होते हैं, किंतु उनमें से एक या दो कलाकार महिला वेष धारण कर लेते हैं, जिन्हें ‘महरी’ कहा जाता है

गोटा गैर (भीनमाल)
गोटा गैर होली में पुरूष मंडली हाथों डंडे लेकर नृत्य करते हैं। गैर नृत्य अपनी आँखों से देखने पर अद्भुत नजारा लगता है | एक हाथ से आगे वाले डंडे को और दूसरे हाथे से पीछे वाले के डंडे को मरना होता है, एक लय में किया गया यह नृत्य अद्भुद लगता है |

फूलों की होली (गोविंद देवजी मंदिर, जयपुर)
ब्रज की फूलो वाली होली विश्वभर में मशहूर है। ऐसे ही राजस्थान की राजधानी जयपुर में गोविंद देवजी मंदिर में ब्रज की तर्ज पर फूल की लाल और पीली पंखुडि़यों के साथ होली खेली जाती है।

डोलची होली (बीकानेर)
बीकानेर में होली एक अनूठे रूप में खेली जाती है। यहां दो गुटो में चमड़े की बनी डोलची को रंग के पानी से भरकर एक-दूसरे गुटों पर डालकर होली खेली जाती है। जहां चमड़े की बनी डोलची में पानी भरकर एक-दूसरे गुटों पर डाला जाता है।

कंकड़मार होली (जैसलमेर)
यहां कंकड़ से मारकर होली की बधाई दी जाती है। ये पथ्तर मार होली के समान ही होती है।

कंडों की राड़ (डूंगरपुर) डूंगरपुर के एक भाग में गोबर के कंडों की राख से होली खेली जाती है।

बादशाह मेला (ब्यावर, अजमेर)
अकबर बादशाह के नवरत्न में से एक टोडरमल अग्रवाल को ढाई दिन की बादशाहत मिलने की याद ताजा करने के उद्देश्य से धुलण्डी के दूसरे दिन अग्रवाल समाज द्वारा प्रशासन व जनसहयोग से प्रतिवर्ष बादशाह का मेला आयोजित किया जाता है। जिसमे बादशाह अकबर की सवारी ट्रक में बैठकर गुलाल उड़ाते है और बीरबल उनकी सवारी के आगे नाचते हुवे चलते है |

प्रसिद्ध बादशाह मेले में बादशाह द्वारा लुटाई गई गुलाल को "बादशाह खर्ची दे" के नाम से सोने की अशर्फियों की तरह नगर के लोग लूटने को तत्पर दिखाई देते हैं। ऐसी मान्यता है कि लूटी हुई यह लाल गुलाल अपनी तिजोरी व दुकान के गल्ले में रखना कारोबार में वृद्धि के लिए लाभकारी है तथा इससे खजाना कभी खाली नहीं होता।





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