ब्यावर का ऐतिहासिक बादशाह मेला

ब्यावर का ऐतिहासिक बादशाह मेला राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति की झलक प्रस्तुत करते हुए कौमी एकता का संदेश देता है। बादशाह मेलें के दौरान बादशाह की सवारी में शामिल होकर लाल रंग की गुलाल की खर्ची को पाने के लिए यहां हजारों की संख्या में सभी धर्म, जाति एवं वर्ग के लोग जुटते हैं, इस दौरान सांस्कृतिक मेल-मिलाप का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
ऐतिहासिक बादशाह मेला कौमी एकता का प्रतीक है जो ब्यावर को पर्यटन मानचित्र पर भी विशेष स्थान दिलवाता है। अकबर बादशाह के नवरत्न में से एक टोडरमल अग्रवाल को ढाई दिन की बादशाहत मिलने की याद ताजा करने के उद्देश्य से धुलण्डी के दूसरे दिन अग्रवाल समाज द्वारा प्रशासन व जनसहयोग से प्रतिवर्ष बादशाह का मेला आयोजित किया जाता है।
ब्यावर में बादशाह मेला मनायेे जाने के पीछे प्रचलित प्रसंग (किंवदन्ति) के अनुसार एक बार बादशाह अकबर शिकार के उद्देश्य से जंगल में गए लेकिन रास्ता भटक जाने के कारण वे काफी आगे निकल गए। जंगल में डाकुओं ने बादशाह अकबर को घेर लिया तथा जान से मारने की धमकी दी, उस वक्त उनके साथ सेठ टोडरमल अग्रवाल भी थे उन्होंने अपनी वाक् चातुर्यता से न केवल बादशाह को छुड़वाया बल्कि माल व अस्लाह को लूटने से भी बचा लिया। बादशाह अकबर ने इसी चतुराई के बतौर तोहफे के रूप में सेठ टोडरमल को ढाई दिन की बादशाहत बख्शी। आम जनता को धनवान व समर्थ बनाने के लिए ढाई दिन की बादशाहत की याद को जीवित रखने के लिए ढाई घण्टे के बादशाह की सवारी ब्यावर शहर में निकाली जाती है जिसमें बादशाह व वजीर खजाने के रूप में लाल गुलाल लुटाते हैं।
सन् 1851 से नगर में प्रारम्भ हुआ यह मेला सभी समुदाय के लोगों का एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें बादशाह को सजाने संवारने का कार्य माहेश्वरी समाज के बंधु करते हैं। ठंडाई बनाने का कार्य जैन समाज के निर्देशन में उनका सेवक करता है तथा इसका वितरण नगर के प्रमुख बाजारों में प्रसाद के रूप में किया जाता है। श्री टोडरमल के अभिन्न मित्रा बीरबल (महेशदत्त) मुगल साम्राज्य में अपने मित्रा को प्रथम हिन्दू शासक देखकर पगला से गये थे और बादशाह के आगे-आगे नृत्य करते हुए चल रहे थे, जो ब्राह्मण समाज का व्यक्ति होता है। नृत्य की यह परम्परा आज भी अनवरत् चल रही हैं।
बादशाह मेले में बादशाह द्वारा लुटाई गई गुलाल को "बादशाह खर्ची दे" के नाम से सोने की अशर्फियों की तरह नगर के लोग लूटने को तत्पर दिखाई देते हैं। ऐसी मान्यता है कि लूटी हुई यह लाल गुलाल अपनी तिजोरी व दुकान के गल्ले में रखना कारोबार में वृद्धि के लिए लाभकारी है तथा इससे खजाना कभी खाली नहीं होता।

बादशाह के मेले में पूरा शहर लाल गुलाल की चादर से सरोबार नज़र आता है। ब्यावर के लगभग 100-150 किमी आस-पास के क्षेत्रों में विशेषकर ग्रामीण अंचलों के लोग समूह में ढोल-चंग की थाप पर होली के मधुर गीतों के साथ नाचते गाते मेले की शोभा बढ़ाते हैं। नगर का मुख्य बाजार हजारों लोगों की उपस्थिति में गुलालमय हो जाता है। सैंकड़ों मन लाल रंग की गुलाल की चादर नगर की सड़कों पर बिछ जाती है। सभी एक दूसरे पर गुलाल लगाकर खुशी का इज़हार करते हैं। नगर की महिलाएं व बच्चे सम्पूर्ण बाजार की छतों पर बैठकर इन मनोहारी दृश्यों का आनन्द लेते हैं। सुहानी शाम से प्रारम्भ हुआ यह मेला ढलती रात तक चलता है।
अंत में नगर के प्रशासनिक अधिकारी कार्यालय परिसर में उपखण्ड अधिकारी से गुलाल खेलते हैं। उपखण्ड अधिकारी बादशाह का सम्मान करते हुए राजकीय कोष से बीरबल को नारियल व मुद्रा के रूप में नज़राना पेश करते हैं। यह नजराना देने के प्रथा ब्यावर के संस्थापक कर्नल डिक्सन के समय से प्रभावी है। इस मेले की महत्ता को देखते हुए राजस्थान पर्यटन विभाग ने पर्यटन मेले के रूप में मान्यता दे रखी है।
ऐसे अनूठे मेले में गुलाल के रंग से रंगीत गुलाबी सड़क रेड कार्पेट से भी भव्य नजर आती है | ऐसा अद्भुत नजारा जीवन में एक बार देखना तो बनता है |