गणगौर में 16 अंक का बड़ा महत्व है, 16 श्रंगार करके स्त्रियां 16 दिन तक गणगौर पूजा और पूजन करते समय कुमकुम और मेहँदी, काजल की 16 बिंदी लगाती हैं। 16 ही फल(मैदे और घी ,शक्कर से बनी गोल पूरी जैसी बिना फूली किनारों पर कंगूरेलिये) बनाये जाते है और फिर उनको कलपते है और उसे अपनी सास या ननंद को पैर लगकर दिया जाता है ।
साजिबू नोंग्मा पैनाबा नाम मणिपुरी शब्दों से मिलकर ही बना है, साजिबू - वर्ष का पहला महीना जो आमतौर पर अप्रैल के महीने के दौरान मेइती चंद्र कैलेंडर के अनुसार आता है, नोंग्मा - एक महीने की पहली तारीख, पैनाबा - से हो। जिसका शाब्दिक अर्थ नए साल के पहले महीने का पहला दिन है। जिसे "मीटीई चेइराओबा या सजिबू चीरोबा" भी कहा जाता है | सनमाहिस्म मणिपुर के धर्म का पालन करने वाले लोग इस त्यौहार को नव-वर्ष के रूप में मनाते है।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा का जन्म हुआ था और माता दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसीलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नवसंवत्सर यानि हिंदू नववर्ष का आरंभ होता है। इसके अलावा कहा जाता है कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से भी चैत्र नवरात्र का महत्व बहुत अधिक है।
चैत्र शुक्ल द्वितीया से सिंधी नववर्ष प्रारम्भ होता है। जिसे चेटीचंड के नाम से जाना जाता है। चैत्र मास को सिंधी में "चेट" कहा जाता है और चांद को "चण्डु", इसलिए चेटीचंड का अर्थ "चैत्र का चांद" होता है | चेटीचंड का यह त्यौहार "चेती चाँद " और "झूलेलाल जयंती" के नाम से भी जाना जाता है| सिंधी समुदाय का यह त्यौहार भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में भारत, पाकिस्तान और सिंध प्रदेश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
उगादी का पर्व उन लोगों के लिए नए साल के आगमन का प्रतीक है जो दक्षिण भारत के चंद्र कैलेंडर का अनुसरण करते हैं। जो विशेष रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में माना जाता है| उगादी के दिन सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। यह पर्व प्रकृति के बहुत करीब लेकर आता है जो किसानों के लिए नयी फसल का आगमन होता है| इस दिन पच्चड़ी नाम का पेय पदार्थ बनाया जाता है जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है। उगादी के शुभ पर्व पर दक्षिण भारत में लोग नये कार्यों का शुभारंभ करते हैं|
गुढी पाडवा, चैत्र शुद्ध प्रतिपदा इस तिथि को मनाया जाने वाला त्यौहार है इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर अभ्यंग स्नान किया जाता है। फिर घर की सफाई करके रंगोली बनाई जाती है। सामने दरवाजे पर फूल और आम के पत्ते का तोरण और विजय पताका बांधी जाती हैं। ऊंचे बांबू को पानी से साफ करके उसकी पूजा करके गुढी तैयार की जाती है। गुढी में ऊपर रेशमी कपड़ा या साड़ी पहनाई जाती है। कडूनीम की डाली, आम के पत्ते, फूलों का हार और शक्कर की गाठी की माला उसमें लगाई जाती है। उसके ऊपर तांबे का कलश स्वस्तिक बनाकर उल्टा रखा जाता है।
सप्तमी पूजन के लिए नैवेद्य छठ के दिन दही चावल का मिष्ठान(जिसे औलिया कहा जाता हैं)और गेहूं के आटे और गुड़ के मीठे ढोकले और सब्जी पूरी पकौड़ी पापड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं और सप्तमी के दिन शीतला माता को भोग लगाकर भोजन किया जाता है। सप्तमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है ठंडा(बासी भोजन) खाना ही खाया जाता है। बासी भोजन के कारण ही इसे कहीं -कहीं बासोड़ा भी कहा जाता है।
पर्व का पहला दिन "होलिका दहन" का दिन कहलाता है। होली पूजा वाले दिन संध्या के समय होलिका दहन किया जाता है जिसमे लोग अग्नि की पूजा करते हैं। होली का पहला काम "होली का डंडा गाड़ना" होता है। अगला दिन "धूलिवंदन" कहलाता है। दूसरे दिन सुबह से ही लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि लगाते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है।
भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली का त्यौहार भी बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, जिसे रंगों के त्यौहार के रूप में फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली रंगों के साथ साथ वसंत ऋतु के समान हँसी-खुशी का त्यौहार है| वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण होली पर्व को "वसंतोत्सव और काम-महोत्सव" पर्व भी कहा गया है।
होली का त्यौहार फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है एक पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दो भाई थे, हिरण्याक्ष बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था, उसके बढ़ते पाप को देखकर को देखकर भगवान विष्णु ने उनका संहार किया था। भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप बहुत दुखी हुआ, उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया और उसने अपनी प्रजा से कहा कि वह उसकी पूजा करें
