दीपावली एवं धनतेरस को धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं जिससे माँ लक्ष्मी धन में वृद्धि का आशीर्वाद देती है। शास्त्रों में बताए उपायों की अपनाकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।
दीपावली के दिन आप एक नई झाडू खरीदे। इस नई झाडू की पूजा कर आप पूरे घर की सफाई नई झाडू से करें। जिसके बाद झाडू को छुपाकर रख दें। दीपावली के दिन मंदिर में झाड़ू का दान करना शुभ माना है।
महालक्ष्मी पूजन में कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, गूगल धुप , दीपक, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, पुष्प, पताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत, श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, लक्ष्मी व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, हल्दी का गाठिया, पिली 7 कोडिया, मिष्ठान्न, 11 दीपक इत्यादि वस्तुओं को पूजन के समय रखना चाहिए।
रोशनी का यह त्यौहार दीपावली भारत के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है जो अंधकार पर प्रकाश की विजय और समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। दीपावली (दीप + आवली) शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'रेखा' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। इस उत्सव में घरों के दरवाजो, गलियारों, बाजारों व मंदिरों में दीप प्रज्वलित किया जाता है और रौशनी से सजाया जाता है। जिसकी रौनक बच्चों के साथ साथ हर उम्र के इंसान में देखने को मिलती है |
हिन्दू साहित्य के अनुसार असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। इसे नरक से मुक्ति पाने वाला त्यौहार कहते हैं | मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सुबह तेल लगाकर अपामार्ग की पत्तियां (चिचड़ी के पौधे) जल में डालकर स्नान करने और विधि विधान से पूजा करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर यम के नाम का चौमुखा दीपक जलाते हैं, जिससे अकाल मृत्यु कभी न आए।
कौन है धनतेरस के देवता भगवान धन्वंतरि? दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है |
धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। धनतेरस की पूजा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है आइए जानें इसके पीछे की कथा..
एक बार यमराज ने अपने दूतो से प्रश्न किया - क्या प्राणियों के प्राण हरण करते समय तुम्हे किसी पर दया भी आती है ?
जहां करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं तो वहीं अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की लम्बी आयु और उन्हें सभी प्रकार की विपत्ति से बचाने के लिए रखती हैं जिससे उनके जीवन में सुख और समृद्धि का सदा वास हो। शास्त्रों के अनुसार जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं हुई है वह भी इस व्रत को रखती है तो उन्हें भी संतान सुख की प्राप्ति होती है।
करवा चौथ का त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इसे "करकचतुर्थी" भी कहा जाता है | सावित्री के त्याग और फल से ही शुरू हुई थी करवाचौथ व्रत की प्रथा, अन्न जल त्याग यमराज से पति (सत्यवान) के प्राण वापस लाई थी | तभी से सभी सुहागिनें अन्न जल त्यागकर अपने पति के लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को श्रद्धा के साथ करती हैं। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है। इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और शाम को चाँद की पूजा के बाद व्रत खोलती हैं।
शरद पूर्णिमा से कार्तिक माह व्रत शुरू होता है जो कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है | इस माह में जितेन्द्रिय रह क्र प्रतिदिन स्नान करके और एक ही समय भोजन करते है तो समस्त पापो का नाश होता है | इस व्रत में सुबह जल्दी (तड़के) ही तारों की छाव में ठण्डे पानी से स्नान करते है | यदि गंगा, यमुना, गोदावरी, शिप्रा और नर्मदा जैसे पवित्र नदी में स्नान करे तो फलदायी होता है | किसी भी नदी या तालाब में प्रवेश करने से पहले हाथ - पैर को स्वच्छ करे और आचमन करे तथा जल - कुश से संकल्प करके ही स्नान करे | स्नान के पश्चात 5 पत्थर रख कर पथवारी माता की पूजा करे |
हमारे सनातन धर्म और ज्योतिष शास्त्र में तिथियों का विशेष स्थान होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा और अमावस्या की तिथि से माह पूरा होता है। पंचांग के अनुसार साल में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या आती हैं। हर महीने के 30 दिन को चन्द्र काल के अनुसार 15-15 दिन के दो पक्षों (शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष ) में विभाजित किया गया है। शुक्ल पक्ष में चाँद अपने आकार में बढ़ता है और आखिर में पुरे आकार में होता है उस दिन यानी 15वें दिन को पूर्णिमा होती हैं, वहीं जब कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन होता है तो वह अमावस्या होती है जब चाँद अपने आकार से छोटा होता जाता है। यही चक्र पुरे 12 माह तक चलता है जिसमे कभी कोई तिथि टूट जाती है तो कभी बढ़ जाती है |
एक साहूकार की दो बेटियां थी, एक का नाम कुकड़ था और दूसरी का नाम माकड | दोनों हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थीं। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से पूरा व्रत करती थी। वहीं छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखा करती थी। विवाह योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया।
