मनुष्य, प्रकृति, वृक्षों और पौधों का अटूट रिश्ता है। वास्तु शास्त्र के अंतर्गत वृक्षों और पौधों को उनकी संबंधित दिशा में लगाकर शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं। पेड़, पौधों का वास्तु सुधार में सदैव से ही बड़ा योगदान रहा है । सर्व रोग निवारण तुलसी घर की चारदीवारी में ईशान कोण में लगाना इसका सबसे उत्तम प्रभाव है।
भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता मैया और भ्राता लक्ष्मण के साथ जंगल में पंचवटी बना कर रहे थे । पंचवटी बनाकर उसमें रहने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं ।
सभी स्थलों के वास्तु का उद्देश्य अलग-अलग होता हैं, लेकिन सभी जगह पूजा कक्ष का वास्तु बहुत महत्वपूर्ण होता है, इस कक्ष का उद्देश्य सभी जगह एक ही होता है, भगवान का आर्शीवाद प्राप्त करना।
कभी कभी पूजा पाठ के बावजूद भी जीवन में दिक्कतें कम नहीं होती हैं, हम बहुत पूजा पाठ करते हैं, दान धर्म करते हैं, लेकिन अगर हमको परेशानी आती है तो इसका कारण अज्ञानवश पूजा स्थान का चयन गलत दिशा में होना या वहां वास्तु दोष होना होता है ।
वास्तुशास्त्र का उदगम वेदों से हुआ है। प्राचीन काल में इसे स्थापत्य वेद के नाम से जाना जाता था। स्थापत्य वेद या वास्तुशास्त्र ,अथर्ववेद का एक उपवेद है। अनेक पुराणों जैसे मत्स्यपुराण, अग्निपुराण इत्यादि में वास्तु के उल्लेख मिलते हैं। विश्वकर्मा और मय के साथ साथ अठ्ठारह अन्य ऋषि जैसे प्रभु बृहस्पति, नारद,अत्री इत्यादि वास्तु के मुख्य प्रवर्तक माने गए हैं। वास्तु विषय शास्त्रीय ग्रंथों जैसे मानसार, मयमतम्, समरांगण सूत्रधार में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है
सूर्य देव की 9 संतानों में से शनिदेव एक है इनका जन्म सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया से हुआ था।शिव की आज्ञानुसार शनि आज भी जहां धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए रक्षक हैं वहीं अधार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को कठोर दंड देते हैं ज्योतिषशास्त्र में गुरु को ज्ञान अध्यात्म, भक्ति का मुख्य कारक,केतु को मोक्ष का कारक,सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है किंतु ईश्वर की ओर से प्रेरित करने में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है ।
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