फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को "आमलकी एकादशी" कहते हैं। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। आमलकी एकादशी की महिमा बताते हुए भगवान श्री विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनके लिए फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के पुष्य नक्षत्र में आने वाली एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है।
शिव-भक्त इस दिन शिवलिंग पर जल, कच्चा दूध, दही, पुष्प, बेल-पत्र, धतूरा, चन्दन आदि चढ़ाकर पूजा करते है, आज के दिन व्रत भी करते हैं। जिसके प्रभाव से जीवन के बाद मृत्यु होने पर बैकुंठ धाम जाने का सुख मिलता है। संसार में सभी दुःखों से मुक्ति मिलती है। विवाहित महिलाएं अपने पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं व कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर के लिए इस दिन खासतौर पर व्रत रखती हैं और शिव की पूजा करती है।
यूँ तो सृष्टि के कण-कण में ईश्वर का वास है। लेकिन सूर्य और चन्द्रमा ईश्वर के दिव्यचक्षु सदृश है। जब-जब सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, हम प्रभावित होते हैं। ऐसा ही एक त्योहार हैं मकर संक्रांति, शीत ऋतु के पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं यहाँ "मकर" शब्द मकर राशि और संक्रांति अर्थात संक्रमण अर्थात प्रवेश करना एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के स्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।
कजली तीज हमारी भारतीय संस्कृति का एक परंपरागत लोक पर्व है। इस कजली तीज को बड़ी तीज, बूढ़ी तीज ,तथा सातुड़ी तीज के नाम से जाना जाता है। यह व्रत विशेषकर सुहागिन महिलाओं का होता है कुमारी कन्याओं तथा युवतियों के लिए यह उल्लास एवं खुशी का पर्व है। मेहंदी लगाना श्रंगार करना तथा विशेषकर लहरिया की साड़ी इस दिन ज्यादातर पहनी जाती लहरिया की साड़ी हल्की-हल्की फुहारे झूले का झूलना तथा कजरी गीत गाना अपने आप में ही एक सुखद अनुभूति है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी हरिशयनी या पद्मा एकादशी कहा जाता है । हिंदू मान्यता के अनुसार 4 महीनों के लिए भगवान श्री विष्णु निद्रा में रहते हैं.जिसे हरिशयन काल कहते हैं। इन 4 महीनों में विवाह आदि जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे "देवउठनी या हरि प्रबोधिनी एकादशी" भी कहा जाता है, के दिन भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है तथा इसी दिन से मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है।
हरियाली अमावस्या, जिसे हम सभी श्रावण मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाते हैं l यह भारतवर्ष ही है जो किसी पर्व, त्योहार , उत्सवों के आगमन और प्रस्थान में भी समान रूप से अपने आराध्य का आराधक बना रहता है l जैसे पश्चिम दिशा में सूर्यास्त के समय में भी हम पूजा का थाल लिए ईश्वर से कल्याण की कामना करते हैं जिसे हम छठ पूजा कहते हैं ठीक उसी प्रकार जब हम अपनी प्रकृति की उपासना करते हैं, श्रावण मास के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं तथा उसके आगमन पर सहर्ष स्वागत करते हैं उसे हम हरियाली अमावस्या के नाम से जानते हैं l
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वर्ष में चार बार नवदुर्गा या नवरात्रि का आगमन क्रमशः - माघ, चैत्र, आषाढ़, आश्विन में होता है l चैत्र मास की नवरात्रि को बसंतोत्सव नवरात्रि अथवा बड़ी नवरात्रि कहा जाता है,आश्विन मास की नवरात्रि छोटी नवरात्रि कहलाती है l तथा शेष दो आषाढ़ और माघ की नवरात्रियाँ गुप्त नवरात्रि कहलाती हैं l
कहते हैं माहेश्वरीयों की उत्पत्ति भगवान महेश (शिवजी) और माता पार्वती के आशीर्वाद से हुई है। कुछ लोग तो माहेश्वरी यों को भगवान शिवजी के वंशज भी कहते हैं। यह सुनते ही शरीर, आत्मा में एक सकारात्मक शक्ति का जैसे संचार हो जाता है। मेरा तो मानना यह है कि ऐसा हो भी सकता है क्योंकि बहुत सारे बल्कि सबसे ज्यादा अच्छे गुणों की झलक हमें माहेश्वरी यों (मारवाड़ी यों) में दिखाई देती हैं।
एक बार महर्षि व्यास सभी पांडु पुत्रों ( युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव ) को वर्ष की सभी एकादशी व्रत का महात्म्य बता रहे थे जिसे सुनकर पांडु पुत्रों ने एकादशी व्रत करने का संकल्प लिया l लेकिन बलशाली भीम के लिए यह सहज मार्ग नहीं था कि मास के दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत रख सकें क्योंकि भीम को एक दिन तो क्या एक पल भी बिना भोजन के नहीं रहा जाता उन्होंने व्यास जी से कहा - आचार्य आप तो जानते ही है कि मेरे उदर में वृक नामक अग्नि है जिसके फलस्वरूप मुझे बिना खाए नहीं रहा जा सकता। अतः आप कृपा कर कोई ऐसा मार्ग बताने का श्रम करें जिसे मैं आसानी से कर सकूं
हिंदू संस्कृति में अनेको तीज-त्योहार, परंपराएं है जो हमें प्रकृति से एवं निसर्ग से जोड़े रखती हैं। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे इन को भगवान का दर्जा दिया गया है। जैसे नागपंचमी (सांप की पूजा), पोळा (बैलों की पूजा), वसुबारस या बछ बारस (गाय- बछड़े की पूजा), तीज गुड़ी पाड़वा (नीम और आम के पत्तों का महत्व), दशहरा (शमी वृक्ष के पत्ते), वटपौर्णिमा (वड या बरगद के पेड़ की पूजा)। हर सुहागन महिला अपने पति के दीर्घायु के लिए वट सावित्री का व्रत करती है।
कहानी सारांश रूप में यह है कि एक तरफ तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं, दूसरी तरफ महा पराक्रमी विजेता रावण है, दोनों ही आचरण और धर्म में एक दूसरे के विपरीत है और कुछ पूरक भी है, लंका में जब दोनों का अनिर्णीत युद्ध चल रहा था तब एक समय ऐसा आया कि रावण और उसकी सेना ने राम की सेना को बुरी तरह से पदतल कर दिया उसके अट्टहास से धरती ...
वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बसंत ऋतु का समापन होकर ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है और इसी दिन को हम सनातनी 'अक्षय तृतीया' या 'आखा तीज' के रूप में मनाते हैं। यह दिन अबूझ या सर्वसिद्ध या स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में माना गया है, इसलिये सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है।
गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं अर्थात मनपसंद वर पाने की कामना लिये कुँवारी लड़कियां इस पर्व में पूजन के समय कुछ जगह रेणुका की गौर बनाकर तो फिर कुछ जगह विभिन्न तरह की सफेद मिट्टी की आकृति आँककर उसपर मिट्टी के पालसिये में होली की राख की पिण्डोलियाँ बनाकर पूजन करती है।
हनुमान जयन्ती एक हिन्दू पर्व है। यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ माना जाता है। हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है। हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च या अप्रैल के बीच और दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को अर्थात सितंबर-अक्टूबर के बीच।
भारतीय हिंदू संस्कृति, परंपराओं एवं सनातन धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व का अत्यधिक महत्व है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा एवं आराधना की जाती है। शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन लय एवं प्रलय दोनों ही उनके अधीन हैं। अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश दोनों ही महादेव के अधीन है। त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही शिव रूप हैं। आकाश और पाताल तीनों लोक के आदि देव महादेव ही हैं।
जया एकादशी के दिन व्रत रखने से एवं भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मृत्यु के उपरांत स्वर्ग की प्राप्ति के लिए जया एकादशी का व्रत एवं जया एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। मनुष्य के द्वारा जीवन काल में अनेक पाप हो जाते हैं तथा उन्हीं पापों की सजा से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जया एकादशी का व्रत किया जाता है।
श्लोक के अनुसार तिल का उपयोग स्नान करने, हवन करने, उबटन करने,तिल मिश्रित जल को पीने तिल का दान करने एवं भोजन में तिल का उपयोग करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस तरह 6 प्रकार से तिल का उपयोग अनंत फल देता हैं एवं भगवान विष्णु की आराधना के लिए विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने से सुख समृद्धि में वृद्धि होती है।
सुख संपत्ति समृद्धि का प्रतीक पोंगल का त्योहार दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। जिस प्रकार उत्तर भारत में जनवरी महीने के बीच में मकर संक्रांति एवं लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है उसी प्रकार दक्षिण भारत में पोंगल का पर्व मनाया जाता है।
पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी का अपना अलग महत्व है। अधिकांश इस एकादशी का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है, माना जाता है कि इस दिन जिस व्यक्ति ने पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ उपवास किया एवं हृदय से श्री हरी की आराधना की उसे स्वस्थ सुंदर एवं गुणवान पुत्र की प्राप्ति होती है।
भगवान श्री राम चेतना और माता सीता प्रकृति शक्ति की प्रतीक हैं। चेतना व प्रकृति का मिलन का योग असाधारण है। मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को यह विशेष योग भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे "विवाह पंचमी" कहते हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब प्रभु श्री राम और माता सीता का विवाह हुआ था, उस समय श्रीराम की उम्र 13 वर्ष तथा माता सीता की उम्र 6 वर्ष थी।
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी कहलाती हैं। इस व्रत के प्रभाव से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन श्री कृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है। भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है। मोक्ष का अर्थ है मोह का त्याग। इसलिए यह एकादशी मोक्षदा के नाम से भी जनि जाती है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की धूप, दीप नैवेद्य आदि से भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
गोवर्धन परिक्रमा साक्षात श्री कृष्ण भगवान की परिक्रमा है। इस कलयुग में जो श्रद्धा से भरकर परिक्रमा करता है वो गोवेर्धन नाथ की अनूठी कृपा का पात्र जरूर बनता है। गोवर्धन परिक्रमा श्री कृष्ण के लिए भक्तों के प्रेम को दर्शाता है। इस कलियुग में गिरिराज जी महाराज की परिक्रमा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। गोवर्धन की परिक्रमा श्रद्धालुओं के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है।
