भारतीय परम्परा

विवाह संस्कार की उत्पत्ति प्रकार नियम एवं रिवाजें

विवाह संस्कार की उत्पत्ति प्रकार नियम एवं रिवाजें

विवाह स्त्री और पुरुष के बीच अनोखा एवं आत्मिक, भावनात्मक संबंध है। विवाह को कुछ लोग दूसरा जन्म ही मानते हैं क्योंकि विवाह के पश्चात स्त्री एवं पुरुष दोनों का संपूर्ण जीवन बदल जाता है। विवाह का शाब्दिक अर्थ वि+आहा=विवाह विशेष उत्तरदायित्व वहन करना। हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव के सोलह संस्कार होते हैं। विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार जो मानव का त्रयोदश संस्कार है।

स्वस्तिक

स्वास्तिक का उपयोग

स्वास्तिक का चिन्ह हम अपने जीवन में बचपन से देखते आ रहे हैं। किसी भी शुभ कार्य में इसे अवश्य बनाया जाता है। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी इसका महत्व है तथा प्रयोग होता है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक स्वास्तिक का चिन्ह ही माना जाता है। ऐसा माना जाता है। की शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले। इसको बनाने से कार्य मंगलकारी तथा संपूर्ण होता है। स्वास्तिक का चिन्ह सौभाग्य का प्रतीक है तथा। स्वास्तिक वैदिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण पौराणिक चिन्ह है।





Indian Wedding

सप्तपदी या अष्टपदी

हिन्दू धर्म में जब भी विवाह संस्कार होता है तो उस समय सात फेरे लिए जाते हैं जिन्हें हम सप्तपदी नाम से जानते हैं। सप्तपदी में सात तरह के वचन होते हैं जिन्हें वर और वधु को बताया जाता है। लड़की यह वचन अपने होने वाले पति से मांगती है। यह सात वचन दाम्पत्य जीवन को प्रेम, खुशहाल और सफल बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है?

स्वस्तिक बनाने के तथ्य | स्वस्तिक कैसे बनाया जाता है | स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है

स्वस्तिक का उदगम संस्कृत के "सु" उपसर्ग और "अस" धातू को मिलकर बना है। संस्कृत में "सु" का अर्थ शुभ/मंगल और "अस्ती" का मतलब होना है अर्थात कोई भी कार्य शुभ और मंगल होना है। "स्वस्तिक" बनाते समय हमेशा लाल रंग का ही उपयोग किया जाता है। क्योंकि लाल रंग भारतीय संस्कृति में शुभ माना जाता है। धनवृद्धी, गृहप्रवेश, ग्रहशांति, वास्तुदोष निवारण, नई दुकान मे व्यापार की वृध्दी और लाभ होने के लिए या फिर कोई भी पूजा पाठ करने से पहले "स्वस्तिक" बनाया जाता है। इसके बगैर कोई भी पूजा की शुरुवात नही की जा सकती है।





तिलक का महत्व

तिलक क्यों और कैसे लगाते है ? | तिलक के प्रकार | तिलक का महत्व

शास्त्रों के अनुसार कोई भी शुभ कार्य में माथे पर लगाया जाने वाला बिंदु मतलब तिलक होता है। अगर पूजा पाठ के समय हम बिना तिलक लगाए पूजा करते हैं तो वह पूजा निष्फल मानी जाती है। तिलक हमेशा मस्तिष्क के मध्य भाग (दोनों भौंहों के बीच नासिका (नाक) के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर) पर लगाया जाता है। हमारे मस्तिष्क के बीच में "आज्ञा चक्र" होता है, जिसे "गुरु चक्र" भी कहा जाता है। मस्तिष्क के बीच में केंद्र बिंदु होने के कारण हमारी एकाग्रता और स्मरण शक्ति बनी रहती है। यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसलिए इसे "शिवनेत्र" अर्थात कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है।

Toran Custom in wedding

शादी में क्यों मारा जाता है तोरण?

भारतीय संस्क्रति में जितने भी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्य होते है उनके पीछे कुछ न कुछ कारण जरूर निहित होता है। इसलिए भारतीय संस्कृति से जुड़ी ये अलग अलग प्रथाये देश विदेश में सभी को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इन्ही प्रथाओ में से एक है तोरण मारने की प्रथा या परम्परा जो की शादी के समय दुल्हे को पूरी करनी होती है। जो की सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे भी एक मान्यता जुडी हुवी है |

माना जाता है कि प्राचीन काल में तोरण नाम का एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण करके बैठ जाता था।





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