Bhartiya Parmapara

प्री वेडिंग – एक फिज़ूलखर्च

शादी फिक्स होते ही लोगों का सबसे पहला सवाल– "प्री वेडिंग हो गई?" 
हो गई तो अच्छी बात है नहीं हुई तो क्यों नहीं हुई? आजकल तो सभी करवा रहे हैं। इस आधुनिक युग में ये सब आम बात है, अरे भाई! शर्माना कैसा? आप बस तैयारी शुरू करो। आपको एक बहुत अच्छे फोटोग्राफर और प्लेस (स्थान) बताने की जिम्मेदारी हमारी रहेगी। ज्यादा खर्च नहीं आएगा बस वही..... 'साठ से सत्तर हजार मात्र' ही लगेंगे! और भी...अच्छी फोटोग्राफी चाहिए तो रुपए बढ़ा देना।

आजकल ये हर रिश्तेदार का स्वभाव बन गया है।


भारतीय संस्कृति में विवाह – हमारी भारतीय संस्कृति में विवाह को ईश्वर का वरदान और आशीर्वाद के रूप में माना जाता है। बड़े बुजुर्गों का मानना है कि जोड़ी ईश्वर की बनाई हुई होती है। इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन आजकल के मानव इन सभी रीति-रिवाजों से धीरे–धीरे मुंह मोड़ने लगे हैं। इसके अलावा पश्चिमी परंपराओं को अपनाते जा रहे हैं। ये कहाँ की नीति है? हिंदू धर्म में लड़का और लड़की का विवाह के पहले मिलना धर्म के विरुद्ध माना जाता है। आधुनिकता के चलते इन सब बातों को दरकिनार किया जा रहा है। विवाह सात जन्मो का पवित्र बंधन होता है। आजकल की युवा पीढ़ी इन सब बातों का तात्पर्य नहीं समझते।


प्री वेडिंग – विवाह से पहले युवक–युवती एक–दूसरे से मिलने के साथ ही साथ अलग–अलग स्थानों में जा कर फिल्मों की तरह फोटोशूट कराते हैं। नए–नए आधुनिक कपड़े, नए जूते, आभूषण, मेकअप वगैरह.....वगैरह....! आजकल के युवक–युवती अपने बड़े बुजुर्गों, माता–पिता, भाई –बहन के सामने ऐसे फोटो शूट कराते हैं मानो.... जन्मों से नाता हो। पश्चिमी सभ्यता को अपनाना और भारतीय संस्कृति को भूलना कहाँ तक उचित है? अगर कोई रोक–टोक करे तो बारूद की तरह फटने में देर नहीं करते। "देहाती" शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अरे! तुमको क्या पता ये प्री वेडिंग शूट क्या होता है? अच्छा! सोच बदलो सोच। 

ठीक है, सोच बदलना ही चाहिए। लेकिन सोच के साथ–साथ  मर्यादा, धर्म और संस्कृति पर निष्ठा रखनी चाहिए। छोटे–छोटे कपड़े पहनकर एक–दूसरे को आलिंगन करना, प्रेम का इजहार करना, शर्मशार कर देने वाली हरकतें करना। क्या इन्हीं सब बातों के लिए सोच बदलना है? जिस इंसान से आप कुछ ही हफ्ते पहले मिले हैं, बिना एक–दूसरे को जाने, सोशल मीडिया में प्रेम का इजहार कर के क्या बताना चाहते हैं कि हम एक–दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं? विवाह के पहले ही सब कुछ खुलेआम हो जा रहा है। लज्जा व संकोच नाम की चीज बची ही नहीं है और लोग बोलते हैं सोच बदलो। प्रेम दिखावा नहीं है जो दुनिया के सामने दिखाया जाता है। जिन चीजों में मर्यादा है उसको सरे-आम दिखाया जा रहा। यही आजकल के नई पीढ़ी की सोच बन गई है।


रीति–रिवाज – हमारी भारतीय संस्कृति में कन्या का हाथ वर के हाथ में तभी दिया जाता है, जब वर–वधु मंडप में बैठते हैं। सभी रस्म, रीति–रिवाजों के साथ एक–दूसरे से जन्म-जन्मांतर का नाता जोड़ा जाता है। आधुनिक युग के चलते ये सभी रस्म प्री–वेडिंग के दौरान ही हो जाता है। बस... औपचारिकता ही बची रहती है। अगर ऐसे आयोजन में होने वाले फिजूलखर्ची को शादी वाले घरों में अथवा अनाथ आश्रम में दान करने बोल दिया जाएगा तो.... आग बबूला होने से पीछे नहीं हटेंगे, वहीं प्री वेडिंग में लाखों रुपए फेंकने से हिचकते नहीं हैं। स्वागत समारोह में सार्वजनिक रूप से प्रोजेक्टर के माध्यम से लोगों को दिखाया जाता है कि हम शादी से पहले ये सभी रस्मों को निभा चुके हैं। बस समाज के सामने मंत्रोच्चारण द्वारा शादी करना ही रह गया था। प्रोजेक्टर के माध्यम से ऐसे प्रसारण करते हैं मानो... बहुत ही अच्छा कार्य किया गया हो। सम्मान मिलने के स्थान में उनकी बदनामी होती है खैर....क्या फर्क पड़ता है...? पड़ोस में शादी हुई तो उनके बेटे–बहू ने प्री वेडिंग करवाया था, सो......हम उससे भी अच्छी जगह जा कर करवाएंगे प्री वेडिंग! लोग स्वयं को दिग्भ्रमित कर लेते हैं और भेड़ की चाल चलने लगते हैं। कहीं–कहीं बड़े बुजर्गों को नजरें झुका कर चलने में मजबूर कर देते हैं।

     

       

पश्चिमी सभ्यता के अनुसार सोच बदल ही रहे हैं तो एक बात है की वहांँ एक नहीं अनेक विवाह करने की सभ्यता है, पति या पत्नियां बदलना वहाॅं फैशन सा है। तो क्या? हमारे हिंदू युवक–युवती भी आने वाले समय में इसे अपनाने में कसर नहीं छोड़ेंगे? बच्चों पर क्या असर पड़ता है इसका ख्याल रखना भी जरूरी है। ये सब परंपराएं बंद होनी चाहिए।

रिश्तेदार और मित्र ऐसे खुश होते हैं जैसे खुद की शादी हो रही। "थ्री डेज़ टू गो..." स्टेटस ऊपर स्टेटस! इंतजार ही नहीं होता। कब वो दिन आए और कब आनंद लें! फिर क्या, शादी के बाद पूछता ही कौन है? चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी कहाँ गए पता ही कहाँ चलता है। जैसे–जैसे शादी नजदीक आती है रिश्तेदारों और मित्रों का स्टेटस के माध्यम से प्रचार–प्रसार बना रहता है। शिष्टाचार बखूबी निभाते हैं।

फोटोग्राफर – हाँ! इन दिनों फोटोग्राफर की कमाई में कोई शक नहीं, क्योंकि प्री वेडिंग के चलते उनकी कमाई दुगुनी हो गई है। फ्री में खाना–पीना, नए–नए जगहों में जाना। उनके जीवन में बदलाव आने लगा है। पाँचों उंगलियाँ घी में डूबी होती हैं। काफी खुश दिखाई पड़ते हैं। तीन मिनट के वीडियो में लाखों रुपए कमाना। वाह! वे सोचते हैं हर दिन ऐसे ही लोग प्री वेडिंग कराते रहें और हम नोट गिनते रहें।

नोट – मेरी बातों से बहुत से सामाजिक/सज्जन व्यक्तियों को ठेस पहुँची होगी। तीखी मिर्ची भी लगी होगी, क्यों? क्योंकि… वे स्वयं अपने–अपने विवाह से पूर्व प्री–वेडिंग करवा चुके होंगे। सो... "सच तो कड़ुआ होता है न!" (सत्यं सदा कटु एव भवति)। निवेदन है कि पश्चिमी सभ्यता को छोड़कर भारतीय परंपराओं पर प्रकाश डालें। बच्चों को धार्मिक और आध्यात्मिकता से जोड़ें। विदेशों में भारतीय परंपराएं अपनाई जा रही हैं और हमारे देश के सभ्य नागरिक अपने ही गौरवशाली और मर्यादित रीति–रिवाजों में पीछे होते जा रहे हैं।        

     

       

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